'मेरा दर्द' मुझे ही सहने दो,
'मुझको' मुझमे ही रहने दो ।
मैं क्या करता हूँ? पता नहीं,
'पर जो करता हूँ' करने दो ।।
तुम दर्द मिटा दोगे मेरे ?
छोड़ो जी, जाओ, रहने दो ।
ये दर्द मुझे ज़न्नत जैसे,
मेरी ज़न्नत में मुझे रहने दो ।।
मदमस्त-हवा के कानो में,
थोड़ी सरगोशी भरने दो ।
सूरज की किरणों पर मुझको,
संदेश मेरे कुछ लिखने दो ।।
ये ख़्वाब मेरे सब मिट्टी हैं,
इनको मिट्टी ही रहने दो ।
कोई लाश हवा में बहती है,
तुमको क्या करना बहने दो ।।
तुम काँच का प्याला चमकदार,
कितनो से होठ लगाना है !
मैं मिट्टी का कुल्हड़ हूँ जी,
इक-को छूकर मर जाना है ।।
लो मान लिया मै मिट्टी हूँ,
मुझको मिट्टी ही रहने दो।
तुम रोज़ अनगिनत लब चूमो,
मुझे इश्क़ एक से करने दो ।।
पर्वत झरने में पिघल गया,
हाय! कितना दर्द सहा होगा ।
असहज होगी उथल-पुथल,
'तब जाकर कहीं' बहा होगा ।।
पर्वत-सी पीर सहे पर्वत,
पाषाण दिलों में रहने दो ।
हम पत्थर-दिल ही अच्छे हैं,
तुम पत्थर-दिल ही रहने दो ।।
श्मशान उम्मीदें कब करता ?
'बारात मेरे घर आएगी' ।
कब लाश उम्मीदें करती है ?
'फिर जीवन पा जाएगी' ।।
बस्ती औ चौराहों पे,
मुर्दे जलते हैं जलने दो ।
सुनसान अंधेरी नगरी में,
दीपक को रोशनी करने दो ।।
चीखों से भरा मरघट हूँ मैं,
मुझको मरघट ही रहने दो ।
जलती लाशों की लपटों को,
जलती लाशों को सहने दो ।।
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