खोजें

गुरुवार, 7 जनवरी 2021

काश

   





 काश!


काश! प्रभाकर की किरणों पर,

              गर अक्षर लिक्खा जाता ।

मैं अपने सारे खत तुम तक,

                   लश्कारों से पहुँचाता।।





काश! हवा के झोंके सुनतें,

                 कानाफूसी कर आता। 

मैं अपने सारे सन्देशे,

                 समीरणों से पहुँचाता।। 





काश! तिमिर जी पथ बन जातें,

         या मैं स्वयं तिमिर बन जाता। 

कहीं अंधेरे मे गर चलतें,           

             गिरने से मैं तुम्हें बचाता ।।


बाहुपाश मे भरकर तुमको,

           रोज रात को तुम्हें सुलाता। 

 गर सपनो से नींद उचटती,

          थपकी देकर पुनः सुलाता ।।





काश! दिवा मे मैं घुल जाता,

         या मैं सूर्य-किरण बन जाता। 

सर्दी मे गुनगुन सी गरमी,

              देकर सारी ठंड भगाता।।


सागर के पानी पर जैसे,

           सूरज अद्भुत रंग सजाता ।

सुबह तुम्हारे चेहरे पर मैं,

     झिलमिल इक तस्वीर बनाता ।।


एकाकी में कभी बैठतीं,

         सूर्य-रश्मि बन नैन मिलाता। 

तुम इठलाकर बाते करतीं ,

           मैं चितवन करते इतराता।। 


बाद वृष्टि के खिली धूप, या-

     शामों की बन स्वर्ण-लालिमा। 

कभी मैं तुमको हर्षित करता,

       कभी मैं अपनी याद दिलाता।।  


            



काश! पवन जी मुझसे चलतें,

         या मैं स्वयं पवन बन जाता।

गर्मी में तर-बदर बदन का,

           समीरणों से स्वेद सुखाता।।


चंदन गुलाब जैसे बागों की,

          मैं खुशबू मनमोहक लाता। 

कभी तुम्हारी सांस कभी,

        शीतल मस्त वायु बन जाता।।





काश! कहीं बादल बन जाता,

    काश! कहीं मैं जल बन जाता। 

प्यास बुझाता पानी बनकर,

    रक्त मे मिलकर दिल धड़काता।।





काश! कहीं आकाश मैं होता,

    काश! कहीं अवकाश मैं होता ।

बाहर से तुम मुझ मे होती,

          अन्दर से मैं तुझ मे होता।। 


                   अवध कुमार...✍️









       

        


4 टिप्‍पणियां:

मुझको मुझमे ही रहने दो

'मेरा दर्द' मुझे ही सहने दो,  'मुझको' मुझमे ही रहने दो । मैं क्या करता हूँ? पता नहीं,   'पर जो क...