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सोमवार, 7 जून 2021

मुझको मुझमे ही रहने दो





'मेरा दर्द' मुझे ही सहने दो,

 'मुझको' मुझमे ही रहने दो ।

मैं क्या करता हूँ? पता नहीं, 

 'पर जो करता हूँ' करने दो ।।


तुम दर्द मिटा दोगे मेरे ? 

छोड़ो जी, जाओ, रहने दो ।

ये दर्द मुझे ज़न्नत जैसे,

मेरी ज़न्नत में मुझे रहने दो ।। 

 




मदमस्त-हवा के कानो में,

 थोड़ी सरगोशी भरने दो ।

सूरज की किरणों पर मुझको,

संदेश मेरे कुछ लिखने दो ।।


ये ख़्वाब मेरे सब मिट्टी हैं, 

इनको मिट्टी ही रहने दो ।

कोई लाश हवा में बहती है, 

तुमको क्या करना बहने दो ।।

 

 



तुम काँच का प्याला चमकदार,

 कितनो से होठ लगाना है ! 

मैं मिट्टी का कुल्हड़ हूँ जी,

 इक-को छूकर मर जाना है ।। 


लो मान लिया मै मिट्टी हूँ,

 मुझको मिट्टी ही रहने दो। 

तुम रोज़ अनगिनत लब चूमो, 

मुझे इश्क़ एक से करने दो ।। 





पर्वत झरने में पिघल गया, 

हाय! कितना दर्द सहा होगा ।

असहज होगी उथल-पुथल,

'तब जाकर कहीं' बहा होगा ।।


पर्वत-सी पीर सहे पर्वत, 

पाषाण दिलों में रहने दो । 

हम पत्थर-दिल ही अच्छे हैं,

तुम पत्थर-दिल ही रहने दो ।।





श्मशान उम्मीदें कब करता ? 

 'बारात मेरे घर आएगी' । 

कब लाश उम्मीदें करती है ? 

 'फिर जीवन पा जाएगी' ।।


बस्ती औ चौराहों पे, 

मुर्दे जलते हैं जलने दो ।

सुनसान अंधेरी नगरी में, 

दीपक को रोशनी करने दो ।।


 चीखों से भरा मरघट हूँ मैं, 

मुझको मरघट ही रहने दो ।

जलती लाशों की लपटों को, 

जलती लाशों को सहने दो ।। 


मंगलवार, 11 मई 2021

मैं क्या हूँ?



ये हाथ मेरे हैं, ये आंखे मेरी हैं, यह शरीर मेरा है, यह दिल मेरा हैं, 

यह बुद्धि मेरी है, यह मन मेरा है, ये विचार मेरे है,

फिर मैं क्या हूँ? आत्मा? नही, नही। 

यह आत्मा मेरी है, मतलब मै आत्मा नही कुछ और हूँ। मगर हूँ क्या? 


स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर तक का हर एक अंग मेरा है। तो मैं क्या हूँ?

किसी ने कहा था "वह सबकुछ निकाल दो जो आप नही हो, तत्पश्चात जो बचेगा वह आप होंगे" ।


जब मैने 'वह सबकुछ निकाल दिया जो मै नही था', तो पता चला कुछ बचा ही नही । 

यही सच है, "मैं" नाम की कोई चीज है ही नहीं ।

अर्थात् सबकुछ मेरा तो है, परन्तु मैं कुछ भी नही ।


अब अगर बात करें, कि 'क्या "मैं" का कोई अस्तित्व है'?

यदि "मैं" जैसी कोई चीज है? तो वह है "हम" ।


क्योंकि हमारी रचना स्थूल एवं सूक्ष्म शरीर के अनेक अंगों का मिश्रण है ।

हम एक नही, अनेक अंग (स्थूल शरीर, बुद्धि, मन, भावना, आत्मा आदि ) हैं ।

अर्थात् हम जिसे "मैं" कहते हैं, वास्तव में वह "हम" है ।



शायद शरीर के सभी अंग मिलकर इस मिश्रित संरचना को किसी नाम से इंगित करना चाहते हैं, शायद ये इस मिश्रित संरचना को "हम" से इंगित करना चाहते हैं, परन्तु अज्ञानता वश "मैं" "मैं" रटा करते हैं । 



इसे ऐसे समझने का प्रयास करते हैं-


 मान लो,

       एक जगह 20 व्यक्ति इकट्ठे हैं, वे सब मिलकर कहें कि "हम एक समूह हैं" या "हम समूह हैं"। तो बात समझ आती है । 

लेकिन यदि उनमे से कोई कहे "मैं समूह हूँ", या सभी मिलकर एक साथ कहें "मैं समूह हूँ" तो यह उनकी अज्ञानता ही होगी ।



यदि शरीर, मन, बुद्धि, हृदय, भावनाएं, आत्मा कुछ न हो तो मैं भी न हूँगा, कुछ न हूँगा । ये सब हैं तो मैं हूँ ।इनके साथ सबकुछ हूँ, इनके बिना कुछ भी नही । 


यही तो है अहम् से वयम् की यात्रा । 

यही तो है मैं से हम की यात्रा । 

यही तो है बिंदु से सिंधु हो जाना । 

यही तो है संक्षिप्त से विस्तृत हो जाना ।ो


फिर भी अहम् से वयम् की यह यात्रा तो सिर्फ बौद्धिक है, वास्तविक तो तब होगी जब हम 'मैं की जगह हम को' आचरण में उतार लेंगे ।


रविवार, 9 मई 2021

Perfect

Hey! Guys, 

     My dear friend Rishindranath sung a beautiful song "perfect",

 for listen his sweet voice please click here 👉 ▶️ or Play. 





Lyrics- I found a love for me
Oh darling, just dive right in and follow my lead
Well, I found a girl, beautiful and sweet
Oh, I never knew you were the someone waiting for me
'Cause we were just kids when we fell in love
Not knowing what it was
I will not give you up this time
But darling, just kiss me slow, your heart is all I own
And in your eyes, you're holding mine
Baby, I'm dancing in the dark with you between my arms
Barefoot on the grass, listening to our favourite song
When you said you looked a mess, I whispered underneath my breath
But you heard it, darling, you look perfect tonight
Well I found a woman, stronger than anyone I know
She shares my dreams, I hope that someday I'll share her home
I found a love, to carry more than just my secrets
To carry

बोलो जी जनतंत्र कहाँ है?



संविधान में सम-विधान है, 

किस-किस को संविधि का ज्ञान है? 

भोली जनता दर-दर लुटती,

हाय! दस्यू को दस्युता शान है । 


संविधि-ज्ञाता न्यायशील हों, 

वह विक्रम-सा तंत्र कहाँ है? 

बोलो जी जनतंत्र कहाँ है? 

राम-राज्य का मंत्र कहाँ है?

रविवार, 2 मई 2021

ऐ वक्त बता........



ऐ वक्त बता तेरे सितम की सरहद कहाँ होगी ?
यही होगी दर्दे हद, तो हद कहाँ होगी? 

खतम कर दूं? पीछे कदम धर दूं? 
हह्हा हह्हा......... 

ये होगी हमारी मोहब्बत की हद, 
तो मोहब्बत बेहद कहाँ होगी? 
         

मुझको मुझमे ही रहने दो

'मेरा दर्द' मुझे ही सहने दो,  'मुझको' मुझमे ही रहने दो । मैं क्या करता हूँ? पता नहीं,   'पर जो क...