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गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

गुनहगार



सजा दो मुझे हाँ गुनहगार हूँ मैं,

हर जख़्म सहने को तैयार हूँ मैं ।


सजा दो मुझे हाँ गुनहगार हूँ मैं.......





मुझे मेरे रब ने है शीशा दिखाया,

फ़क़त व्यर्थ हूँ,  हाँ बेकार हूँ मैं ।


सजा दो मुझे हाँ गुनहगार हूँ मैं.......





चला था चमकने, मै उनके जहां मे,

मुझे न पता था खुद अंधियार हूँ मैं ।


सजा दो मुझे हाँ गुनहगार हूँ मैं.......





तमन्ना थी उनको मैं अनहद खुशी दूं, 

मगर क्या करूं दुख का बाजार हूँ मैं । 


सजा दो मुझे हाँ गुनहगार हूँ मैं.......





सभी को थीं उम्मीदें मुझसे बथेरी, 

सभी के स्वपन का कतलगार हूँ मैं ।


सजा दो मुझे हाँ गुनहगार हूँ मैं.......





जिसे पाने को मैने छोड़ा जमाना, 

वो कहते हैं नफ़रत का हकदार हूँ मैं ।


सजा दो मुझे हाँ गुनहगार हूँ मैं.......





उनकी ख़ता तो तनिक भी नही है, 

दरअसल आजकल थोड़ा बीमार हूँ मैं  ।


सजा दो मुझे हाँ गुनहगार हूँ मैं.......





मैं कहता हूँ "वसुधे! मै तेरा गगन हूँ, 

वो कहते हैं इस धरती पर भार हूँ मैं ।


सजा दो मुझे हाँ गुनहगार हूँ मैं.......





यूं बकवास करना तो आदत है मेरी, 

अजी! ख़ब्ती, दीमागी-बीमार हूँ मैं  ।


सजा दो मुझे हाँ गुनहगार हूँ मैं.......




उन्हे मेरी ज़िद से बहुत दुख मिले हैं, 

अभी भी उन्ही का तलबगार हूँ मैं । 


सजा दो मुझे हाँ गुनहगार हूँ मैं.......





अभी खून मुंह से निकला नहीं है,

अभी मत समझना वफादार हूँ मैं  ।


सजा दो मुझे हाँ गुनहगार हूँ मैं.......



                 

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