प्रेम की अनुभूति होते ही, प्राणी आत्मानंदित हो उठता है, शरीर का रोम रोम पुलकित हो उठता है। आत्मा को एक दिव्य सुख अनुभूति होती है। आत्मपूर्णता की अनुभूति होती है । जब प्राणी स्वयं में पूर्ण हो जाता है, या पूर्णता की ओर बढ़ रहा होता है, तब दिव्य सुख की अनुभूति स्वाभाविक है। यही कारण है कि प्रेम की अनुभूति होने पर वाणी मे मधुरता आ जाती है, क्रोध कम होने लगता है, आसपास का वातावरण तक बसंती, आनंददायी, सुखदायी लगने लगता है । प्रेम माँ की ममता की तरह ही एक ईश्वरीय आशीर्वाद है, एक आत्मीय अनुभूति है।
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रविवार, 21 फ़रवरी 2021
इस कदर
मंगलवार, 16 फ़रवरी 2021
मैने मुड़के वापस नही आना
शक के बादलों
पर्वत में
मत बदल जाना,
समर्पण के महल मेरे
आंसूओं में
मत पिघल जाना ।
अपने आबिद को सम्भाल-
मेरे माबूद,
मैने मुड़ के वापस नही आना ।।
रविवार, 7 फ़रवरी 2021
तुमने छुआ
तुमने छुआ
तुमने छुआ उंगलियों को नजरें झुकाकर,
मैं कर्जदार हो गया।
वो खुशी ,वो फिजा, वो लम्हा
सब यादगार हो गया।।
गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021
वफा़
वफा़
खुद को भूला, खुदा को भी भूला,
इंतहा के लिए और क्या चाहिए ?
न छुएगें लबों को, कभी भी किसी के,
वफा़ के लिए और क्या चाहिए ?
कदमों मे तेरे, शवा हो गए हम,
इम्तिहाँ के लिए और क्या चाहिए ?
झोकों मे तेरे, उड़ा हूँ पतंग सा,
बता ऐ हवा और क्या चाहिए ?
तुम्हारे सिवा, याद रहता नही कुछ,
नशा के लिए और क्या चाहिए ?
ख़ताएं तुम्हारी, क्षमा मैने मांगी,
राब्ता के लिए और क्या चाहिए ?
ज़माने के सारे, सितम सह गया मै,
अदा के लिए और क्या चाहिए ?
ख़ुद्दारी गवाँ दी, तेरी ख़ुशी में,
फ़ना के लिए और क्या चाहिए ?
सुलगती इश़क की, अगन जल उठेगी,
तुम्हारे नजर की हवा चाहिए ।
सातों जनम संग तेरे रहूंगा,
फ़क़त इक वफा का मकां चाहिए ।
मैने तो सबकुछ बयां कर दिया है,
बयां के लिए और क्या चाहिए ?
न छुएगें लबों को कभी भी किसी के,
वफा़ के लिए और क्या चाहिए ?
इंतहा = हद, (अंतिम सीमा) ।
इम्तिहाँ = इम्तिहान।
शवा = ख़ाक, ।
राब्ता = रिश्ता ।
अदा के लिए = निभाने के लिए ।
हवा = वायु , प्रोत्साहन ।
बुधवार, 3 फ़रवरी 2021
लाजवाब हो गया
लाजवाब हो गया
दो शबाबों का मुरक्कब, शराब हो गया ।
तेरी खुशबू से मैं भी, गुलाब हो गया ।।
इश्क़ तो पहले भी था, हसीन था ।
अब बे-हिसाब, अब ला-जवाब हो गया ।।
मुरक्कब (उर्दू ) = मिश्रण(हिन्दी), Mixture(English).
मुझको मुझमे ही रहने दो
'मेरा दर्द' मुझे ही सहने दो, 'मुझको' मुझमे ही रहने दो । मैं क्या करता हूँ? पता नहीं, 'पर जो क...

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तेरी मुश्किलों का लिहाज करते हैं, वर्ना हम, कब? किससे डरते हैं? लोग डरते होंगे मरने से, हम तो हर रोज तुमपे मरते हैं।। अव...
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अड़िए ये बरसात नही अड़िए ये बरसात नहीं, जी भर के गगन रो रहा है। जरा देख मुझे आकर सजना, तेरा सजन रो रहा है। चम-चम...