सब पूछ रहें "क्या लाओगे" ?
कुछ न कुछ सबको बता दिया ।
बेटा, "तुम घर कब आओगे" ?
पूछ के माँ ने रूला दिया ।।
होली मे घर आऊंगा,
अम्मा को ढांंढस बंधा दिया ।
तो घर-गलियों की यादों ने,
मेरी व्याकुलता बढ़ा दिया ।।
जाने के दिन नजदीक हुए,
यादों का चित्रण उभर गया ।
"कहाँ रोज लगती थी संगति,
स्वर्णिम शामों में किधर गया" !
वो कंचे, वो गिल्ली-डंडा,
रस्ते में खुरपी से गड्ढा
जामुन पेरुक अम्बिया अमरा-
से स्मृति पटल सचित्र हुआ ।।
आह्लाद, प्रह्लाद के रंगों से,
हर इक चित्र विचित्र हुआ ।
मन के उपवन मे "मेह देख-
फिर मेहप्रिय का नृत्य हुआ" ।।
इक इक क्षण सदियों जैसा,
ज्यों काले जंगल का रस्ता ।
गिन-गिन के भावविभोर हुआ,
तब गमन दिवस का भोर हुआ ।।
Avadh Kumar.....✍️
Bahut accha likha apne
जवाब देंहटाएंबहुत बढ़िया
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