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बुधवार, 30 दिसंबर 2020

सुबह की पहली याद हो तुम





सुबह की पहली याद हो तुम,
मंदिर में मांगी मुराद हो तुम। 

जो बचपन में सजाई थी हसीन दुनिया तुम संग,
हाँ वही दुनिया, वही फरियाद हो तुम।।
            अवध कुमार....✍️

सोमवार, 28 दिसंबर 2020

मुझसे मिलने





जब मुझसे मिलने को मेरा यार आया,

भावनाओं के समंदर में फिर ज्वार आया।। 


आह, कूक, तड़प सब दबा लिया,

तो समंदर आंखों के द्वार आया।। 

                       अवध कुमार...✍️

रविवार, 27 दिसंबर 2020

अड़िए ये बरसात नहीं









              अड़िए ये बरसात नही 

अड़िए ये बरसात नहीं, जी भर के गगन रो रहा है।
जरा देख मुझे आकर सजना, तेरा  सजन रो रहा है।

चम-चम तड़-तड़ तड़के बिजली,
मेरे ही दिल की तड़पन है। 
यह घहर-घहर घननाद नही,
मेरे ही दिल की टूटन है। 

झर-झर तेज हवा का झोंका,
 बहते आंसू पोछ रहा है। 
तू भी आकर पोछ दे अड़िए,
तेरा सजना सोंच रहा है ।।

दर्द-ज़ुदाई में मेरा, पहला-प्यार रो रहा है। 
तेरे-मेरे संग में, मेरा, परवरदिगार रो रहा है।

अड़िए ये बरसात नहीं, जी भर के गगन रो रहा है।
जरा देख मुझे आकर सजना, तेरा ही सजन रो रहा है।। 
                 
                     अवध कुमार..✍️

मेरी माँ


-:- मेरी माँ -:-


तू मातु मेरी, वात्सल्य-प्रेम की पूर्ण-सिंधु,

                                         मैं एक बिंदु। 

मैं तेरी उम्मीदों का झिलमिल एक सितारा, 

                                 तू मेरी पूर्णिमा-इंदु।।




सब मुझे याद है बात,

                     मातु कुछ भी न भूला।

तेरी बाहें, जैसे बागों में-

               तरुवर की टहनी का झूला।। 


 सब सहा, रहा बिन कहे,

                       पेंड़ अम्बर के नीचे।

 आंधी-वर्षा, सर्दी-गर्मी,

                     मौसम   सब    बीतें ।।


तू तरुवर, तू धरा, सिंधु, हिय पुष्पेंन्द्रु,

                                          मैं   तेरा  बिंदु। 

मैं तेरी उम्मीदों का झिलमिल एक सितारा, 

                                      तू मेरी पूर्णिमा-इंदु।।




सब लेत किराया कमरे का, 

                   तू कोख का भी, धेला न लिया। 

ऊपर वाले ने माँ तुमको,

                         हिरदय कैसा अलबेला दिया! 


धरणी-सम संयम धरा,

       धरा बन गई महतारी। 


विश्राम-शांति, खुशियां-निंदियां,

           रातें      सब    वारी।। 


तू तरुवर, तू धरा, सिंधु, हिय पुष्पेंन्द्रु,

                                   मैं तेरा बिंदु। 

मैं तेरी उम्मीदों का झिलमिल एक सितारा, तू मेरी,

                                              पूर्णिमा-इंदु।।




झंझा-झकोर सम विकल सकल,

 मन की अकुलाई ।


जैसे नदियों की उथल-पुथल,

 सागर में समाई। 


जैसे नीरधि का नीर,

गगन नीरद बन बरसे ।


माँ! तेरा वात्सल्य-प्रेम, 

बन करके ममता-घन बरसे। 


तू तरुवर, तू धरा, सिंधु, हिय पुष्पेंन्द्रु,

                                   मैं तेरा बिंदु। 

मैं तेरी उम्मीदों का झिलमिल एक सितारा, तू मेरी,

                                              पूर्णिमा-इंदु।।  


                                📃..✍अवध कुमार।

बुधवार, 23 दिसंबर 2020

अथर्व है मेरा प्रेम।


अथर्व! है मेरा प्रेम,

  मत सोच बदल जाऊंगा,

लगेगी ठोकर तो,

  गिर के सम्भल जाऊंगा। 


तरसोगे अगर, 

  कभी एक बूंद पानी को,

कसम ख़ुदा की,

  मैं पानी में बदल जाऊंगा।।

        अवध कुमार.....✍️


आ तेरे इश्क़ में क़ुर्बान हो जाऊं।



आ! तेरे इश्क़ में क़ुर्बान हो जाऊं,
तू चाँद,   मैं आसमान हो जाऊं। 

आ! तेरे इश्क़ में क़ुर्बान हो जाऊं,
तू चाँद,   मैं आसमान हो जाऊं। 

मेरी आगोश में सोती रहे तू, सिर रखकर,
मैं जंग-ए-जमाने में लहूलुहान हो जाऊं।। 
      ..........अवध कुमार✍️

वेदना

   


-:- वेदना -:-


किस दुख से

 दृग तरल किए? 

किस भय से,

 तुम विकल गए?

क्यूँ आह भरी,

 मुझसे मिलकर?

क्यूँ आंख से,

 मोती निकल गए?


वह कौन सी पीर,

 उठी मन में? 

क्यूँ वसुधा भीगी,

 अँसुवन में? 

क्यूँ मेरी धरा,

 अधीर हुई?

क्या व्यथा हुई,

 क्या पीर हुई? 


खोने का भय,

 हिय व्याप्त हुआ? 

या लगा प्रेम,

 पर्याप्त हुआ?

क्या सपने सारे

 पिघल गए? 

जो आंसू बनकर

 निकल गए? 


हे! वसुंधरे, 

कुछ तो बोलो,

अंबर कह रहा,

 अधर खोलो ।

तुम तो हो धरा,

 मत हो अधीर। 

बरसात करूं,

 मैं प्रेम नीर।


तुमको अर्पण मम्, प्रेम-सिंधु।

मम् प्राणवल्लभा, प्रिया-इंदु।।

            ..✍️अवध कुमार। 










मंगलवार, 22 दिसंबर 2020

हे दिनकर

   



  प्रभात-प्रार्थना 

हे दिनकर, हे भानु, अर्क, 

हे तरणि, पतंग, आदित्य, हंस। 

हे सविता, हे मार्तण्ड,

हे अंशुमाली, रवि, भास्कर।


जलकर उगने की विधि दे दो। 

चाहे काया, जीवन ले लो।



अपवाद समाज के मिटा सकूं,

अंधियार मगज के मिटा सकूं।

जो बनी दृष्टि भय का कारण,

वो दृष्टि तिमिर से हटा सकूं।


मुझे प्रकाश-पुंज ज्योति दे दो,

चाहे काया, जीवन ले लो। 



अपने सपने भी सजा सकूं,

वादा भी सबसे निभा सकूं। 

प्रण करके जो प्रणय किया 

उसे भीष्म-पिता सा निभा सकूं।


वही देवव्रत सा व्रत दे दो,

चाहे काया, जीवन ले लो।


हे दिनकर, हे भानु…………

        अवध कुमार.....✍

      

अभी हमारी बात, बाकी है।


अभी चकोर के, चाँद से, जज़्बात बाकी हैं,
अभी धरती का तरसना बाकी है,
अभी आकाश की बरसात बाकी है।
फुर्सत में मिलो, तो बताएं, तुम्हें माना है क्या? 
अभी हमारी बात अधूरी है,अभी हमारी बात बाकी है।।
                :+:अवध कुमार✍️:+:

मेरी मृदुल

      :- मेरी मृदुल -:


तेरा नाम मृदुल, तेरा मृदुल-गात।


तेरे कर्ण मृदुल, छोटी सी नाक, 

तेरी अंगुलियाँ, तेरे मृदुल हाथ, 

कुंचित कपोल, मदभरी आंख

तेरे ओष्ठ मृदुल,व चिबुक भाग,

गर्दन का तेरे,     पृष्ठ भाग,


है मृदुल-मृदुल, सम्पूर्ण-गात।। 

तेरा नाम मृदुल, तेरा मृदुल-गात।



तेरी सांसे जैसे, सुखद-वात,

ज्यों मलय-बाग का, मलय-वात, 

अरे! मृदुल सुनो, मेरी सुनो बात,

पागल करती है, तेरी याद,


है मृदुल मृदुल, सम्पूर्ण गात।

तेरा नाम मृदुल, तेरा मृदुलगात।।



कच्ची-पक्की, नींदों की रात,

नश नश में मेरे, ज्वर बिसात,

हर एक मिलन, तेरा आए याद,

जा रही जान, लगता है आज,


है मृदुल मृदुल, सम्पूर्ण गात।

तेरा नाम मृदुल, तेरा मृदुलगात।।

                अवध कुमार........✍️


सोमवार, 21 दिसंबर 2020

मेरे सजन रो पड़ें।

  

              विप्रलंभ 


मैने उनसे कहा, लो सनम मैं चला,

इतना सुनते ही, मेरे सजन रो पड़ें। 




मैने उनसे कहा, लो सनम मैं चला,

इतना सुनते ही, मेरे सजन रो पड़ें। 


तन में सिहरन उठी, आह दिल ने भरी,

दिल जो रोया, तो दोनों नयन रो पड़ें।।






कहना चाहा जो कुछ, तो गला रुंध गया,

कपकपाते हुए,  दो अधर रो पड़ें,


हांथ को जोड़कर सिर हिलाकर कहा,

जा रहे हो किधर, सुनके कर रो पड़ें,


मै मनाता रहा, वो रोते रहें,

वो चुप न हुए, हम स्वयं रो पड़ें। 


मैने उनसे कहा, लो सनम मैं चला,

इतना सुनते ही, मेरे सजन रो पड़ें।।






तन भी बेसुध हुआ, कोई निर्जीव सा,

जो चले थे कदम वो, कदम रो पड़ें,


कितनी! ममतामयी, कितनी! करुणामयी,

देखकर   मेरे  दोनों,   नयन  रो  पड़ें,


कमरे की चार-दीवारी भी रो पड़ी,

यह रुदन देख धरती-गगन रो पड़ें। 


मैने उनसे कहा, लो सनम मैं चला,

इतना सुनते ही, मेरे सजन रो पड़ें।।






सात जन्मों से हैं, हम बिछड़ते रहें,

फिर ज़ुदा देख, सातो जनम रो पड़ें,


भूलकर भी हुआ  पाप हमसे नहीं,

देख किस्मत हमारी,  करम रो पड़ें,


थर्थराता बदन, कपकपाता बदन,

हम भी रोयें फफक-कर सनम रो पड़ें।


मैने उनसे कहा, लो सनम मैं चला, 

इतना सुनते ही, मेरे सजन रो पड़ें।।

                     अवध कुमार…….✍️


मुझको मुझमे ही रहने दो

'मेरा दर्द' मुझे ही सहने दो,  'मुझको' मुझमे ही रहने दो । मैं क्या करता हूँ? पता नहीं,   'पर जो क...