विप्रलंभ
मैने उनसे कहा, लो सनम मैं चला,
इतना सुनते ही, मेरे सजन रो पड़ें।
मैने उनसे कहा, लो सनम मैं चला,
इतना सुनते ही, मेरे सजन रो पड़ें।
तन में सिहरन उठी, आह दिल ने भरी,
दिल जो रोया, तो दोनों नयन रो पड़ें।।
कहना चाहा जो कुछ, तो गला रुंध गया,
कपकपाते हुए, दो अधर रो पड़ें,
हांथ को जोड़कर सिर हिलाकर कहा,
जा रहे हो किधर, सुनके कर रो पड़ें,
मै मनाता रहा, वो रोते रहें,
वो चुप न हुए, हम स्वयं रो पड़ें।
मैने उनसे कहा, लो सनम मैं चला,
इतना सुनते ही, मेरे सजन रो पड़ें।।
तन भी बेसुध हुआ, कोई निर्जीव सा,
जो चले थे कदम वो, कदम रो पड़ें,
कितनी! ममतामयी, कितनी! करुणामयी,
देखकर मेरे दोनों, नयन रो पड़ें,
कमरे की चार-दीवारी भी रो पड़ी,
यह रुदन देख धरती-गगन रो पड़ें।
मैने उनसे कहा, लो सनम मैं चला,
इतना सुनते ही, मेरे सजन रो पड़ें।।
सात जन्मों से हैं, हम बिछड़ते रहें,
फिर ज़ुदा देख, सातो जनम रो पड़ें,
भूलकर भी हुआ पाप हमसे नहीं,
देख किस्मत हमारी, करम रो पड़ें,
थर्थराता बदन, कपकपाता बदन,
हम भी रोयें फफक-कर सनम रो पड़ें।
मैने उनसे कहा, लो सनम मैं चला,
इतना सुनते ही, मेरे सजन रो पड़ें।।
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