प्रभात-प्रार्थना
हे दिनकर, हे भानु, अर्क,
हे तरणि, पतंग, आदित्य, हंस।
हे सविता, हे मार्तण्ड,
हे अंशुमाली, रवि, भास्कर।
जलकर उगने की विधि दे दो।
चाहे काया, जीवन ले लो।
अपवाद समाज के मिटा सकूं,
अंधियार मगज के मिटा सकूं।
जो बनी दृष्टि भय का कारण,
वो दृष्टि तिमिर से हटा सकूं।
मुझे प्रकाश-पुंज ज्योति दे दो,
चाहे काया, जीवन ले लो।
अपने सपने भी सजा सकूं,
वादा भी सबसे निभा सकूं।
प्रण करके जो प्रणय किया
उसे भीष्म-पिता सा निभा सकूं।
वही देवव्रत सा व्रत दे दो,
चाहे काया, जीवन ले लो।
हे दिनकर, हे भानु…………
अवध कुमार.....✍
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