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रविवार, 27 दिसंबर 2020

अड़िए ये बरसात नहीं









              अड़िए ये बरसात नही 

अड़िए ये बरसात नहीं, जी भर के गगन रो रहा है।
जरा देख मुझे आकर सजना, तेरा  सजन रो रहा है।

चम-चम तड़-तड़ तड़के बिजली,
मेरे ही दिल की तड़पन है। 
यह घहर-घहर घननाद नही,
मेरे ही दिल की टूटन है। 

झर-झर तेज हवा का झोंका,
 बहते आंसू पोछ रहा है। 
तू भी आकर पोछ दे अड़िए,
तेरा सजना सोंच रहा है ।।

दर्द-ज़ुदाई में मेरा, पहला-प्यार रो रहा है। 
तेरे-मेरे संग में, मेरा, परवरदिगार रो रहा है।

अड़िए ये बरसात नहीं, जी भर के गगन रो रहा है।
जरा देख मुझे आकर सजना, तेरा ही सजन रो रहा है।। 
                 
                     अवध कुमार..✍️

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