आ! तेरे इश्क़ में क़ुर्बान हो जाऊं,
तू चाँद, मैं आसमान हो जाऊं।
आ! तेरे इश्क़ में क़ुर्बान हो जाऊं,
तू चाँद, मैं आसमान हो जाऊं।
मेरी आगोश में सोती रहे तू, सिर रखकर,
मैं जंग-ए-जमाने में लहूलुहान हो जाऊं।।
..........अवध कुमार✍️
प्रेम की अनुभूति होते ही, प्राणी आत्मानंदित हो उठता है, शरीर का रोम रोम पुलकित हो उठता है। आत्मा को एक दिव्य सुख अनुभूति होती है। आत्मपूर्णता की अनुभूति होती है । जब प्राणी स्वयं में पूर्ण हो जाता है, या पूर्णता की ओर बढ़ रहा होता है, तब दिव्य सुख की अनुभूति स्वाभाविक है। यही कारण है कि प्रेम की अनुभूति होने पर वाणी मे मधुरता आ जाती है, क्रोध कम होने लगता है, आसपास का वातावरण तक बसंती, आनंददायी, सुखदायी लगने लगता है । प्रेम माँ की ममता की तरह ही एक ईश्वरीय आशीर्वाद है, एक आत्मीय अनुभूति है।
'मेरा दर्द' मुझे ही सहने दो, 'मुझको' मुझमे ही रहने दो । मैं क्या करता हूँ? पता नहीं, 'पर जो क...
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जवाब देंहटाएंयह अपनी प्रबल इच्छा है मित्र।
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