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शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

बे-इंतहा प्यार



    बे-इंतहा प्यार 

आ तुझे बे-इंतहा प्यार दूं,
तुझे, तेरे सपनो का संसार दूं। 


भटकते शख्स को इक वफा़ का मकां दे दे, 
बता तेरे कदमों मे सिर भी उतार दूं? 

                       अवध कुमार...... ।

छलकती आंखें



उनके सलूक से, इस क़दर भर आयीं आंखें, 
कि नजर मे सब अंधेरा है। 

बे-इंतहा दर्द की, यह कैसी रात थी! 
यह कैसा सवेरा है! 
            अवध कुमार 

गुरुवार, 28 जनवरी 2021

बेताब निगाहें




बागी-निगाहों से कुछ जता रहे थें, 

मिलने को हूँ बेताब यह बता रहे थें ।




जो आहट सुनते ही भाग जाते थें हमे छोड़ कर, 

कल वो पापा के सामने नजरें मिला रहे थें।। 

                         अवध कुमार। 

सोमवार, 18 जनवरी 2021

छुपा-रुस्तम चाँद




     कल आसमां मे चाँद अधूरा था, 
पर, भरपूर जवां था, उसमें नूर पूरा था। 

छुपा-रुस्तम होना इसी ने सिखाया मुझको, 
  कल तक मै भी अपर्णा था अधूरा था।। 
   
                               अवध कुमार। 

अपर्णा - वह वृक्ष जिसके पत्ते झड़ चुके हो। 



            जो भी करो, गज़ब करो। 
           बात करो या अदब करो।। 
    इक रोज तो दीदार करना ही होगा ,
ये आपकी मर्जी है, तब करो या अब करो ।।
                    अवध कुमार, सुमित अर्कवंशी ।

रविवार, 17 जनवरी 2021

हे! जननी






हे! जननी 


जननी मनोव्यथित न हो,

हे ममतामयी! दुःखित न हो। 


व्याकुल, अनव्स्थित न हो,

भयभीत न हो, माँ त्रसित न हो।।



माँ धैर्य धरो, माँ धैर्य धरो,

व्याकुलता और बढ़ाओ न। 


अनमोल आपके अश्रु-रत्न, 

अँखियन से इन्हे गिराओ न।।



रोने से आपके नभ रोए,

भू भी अपना धीरज खोए। 


जो चरणस्पर्श से पवित्र हुई,

वह घर की खेत की रज रोए।। 


मै हूँ, माँ विचलित न हो, हे ममतामयी! दु:खित न हो। 



 

जब तक शरीर में श्वांस शेष,

तब तलक आत्म-विश्वास शेष। 


सौगंध आपके क्षीर की माँ, 

सौगंध पाणि-लकीर की माँ।। 



होने देता अपमान नहीं, 

खोने देता सम्मान नही।

 

अपयश के तिमिर हटा दूँगा,

मैं सब अपवाद मिटा दूँगा ।।



नभ में सूरज जब चमकेगा,

सब तिमिर दूर हो जाएगा। 


दुखभरी रैन छट जाएगी, 

फिर सुखद भोर हो जाएगा।। 


मेरी मइया विकलित न हो, हे ममतामयी! दुखित न हो। 




क्यूँ नयन आपके द्रवित हुए?

मैं सोंच के भाव-विभोर हुआ।


कोई दबी आह सी फूट पड़ी,

क्लेशित हिय का हर छोर हुआ ।।



सद्मार्ग पे हूँ सन्मार्ग पे हूँ, 

मत सोंचो कि अपमार्ग पे हूँ। 


सत्य प्रेम धर्मच्युत मार्ग,

बतलाए आपके मार्ग पे हूँ।। 



सूर्य-रश्मियों को मइया,

कब तक नीहार ढक पाएगा? 


लाख जलद गरजे बरसे,

तो क्या सूरज बुझ जाएगा?


हे माते! चिंतित न हो, हे ममतामयी! दुःखित न हो। 




तपलीन हुआ भागीरथ तो,

धरती पर गंगा आएगी। 


बसंत ऋतु पर कोयल क्या-

हवा मल्हारें गाएगी।। 



पीपल के नये-नये पत्ते,

देख मनस् हर्षाएगा। 


नव सुमन खिलेंगे उपवन मे,

जग प्रेममयी हो जाएगा।। 



होली मे ढोलक की ताने,

गलियों मे होली के गाने। 


चहुंमुखी प्रेम छा जाएगा,

जैसे द्वापर आ जाएगा।। 


जग प्रेममयी हो जाएगा, आनंदमयी हो जाएगा। 

सर्वतोमुखी बस सुख होगा, भोली मातु भ्रमित न हो।

                               अवध कुमार ।








शनिवार, 16 जनवरी 2021

तेरी मुश्किलों का लिहाज करते हैं



तेरी मुश्किलों का लिहाज करते हैं, 
वर्ना हम, कब? किससे डरते हैं? 

लोग डरते होंगे मरने से,
हम तो हर रोज तुमपे मरते हैं।।
      अवध कुमार.. ✍️

रिश्ते



यदि आपको
 "प्यार पाने की चाह" को नजर-अंदाज करके  प्यार देना आता है, तो 
"आपका रिश्ता लम्बे समय तक चलेगा"। 

और यदि आपका साथी भी ऐसा ही है, 
तो "रिश्ता उम्र भर चलेगा" ।। 


       अवध कुमार.. ✍️

शुक्रवार, 15 जनवरी 2021

ये बेचैनियां



आज मेरी बेचैनियों से मुझे डर लगा,
जैसे किसी अनहोनी का असर लगा। 

ऐ वक्त! तुझे भी बर्बाद कर दूंगा, "मुहब्बत की ख़ातिर",
मेरी मुहब्बत को मत नजर लगा।।

गुरुवार, 14 जनवरी 2021

रिश्ते



हमारा प्रेम उस मोड़ पर आ पहुंचा है जहाँ,
 अक्सर रिश्ते टूट जाया करते हैं। 
दर असल जब प्रेम अपनी चरम सीमा को
 छू रहा होता है तब अक्सर रिश्ते टूट जाते हैं। 

यह वही मुकाम है जहाँ लोग कहते हैं,
 इनके प्यार को किसी की नजर लग गयी। 

यहाँ बहुत ही सावधानी बरतनी होती है।
                     अवध कुमार..✍️

बुधवार, 13 जनवरी 2021

हम हों तुम हों














लोहड़ी, होली, रखड़ी, दिवाली, 
 सब   खुशियां    भरे   त्योहार    हों ।
 
हम हों-तुम हों, हमारा-तुम्हारा प्यार हो,
  पास के पड़ोसी हों, साथ में परिवार हो ।।
             अवध कुमार.....✍️

मंगलवार, 12 जनवरी 2021

आपके इश्क़ मे




आपके इश्क़ मे कोई फ़क़ीर हो जाए तो,
 सम्भाल कर रख लेना। 

क्यूंकि,

न तो कोई दिल, हर किसी के लिए, जोगी  होता है,
और न ही,
 किसी के लिए , हर कोई दिल, जोगी होता है। 
          अवध कुमार.... ✍️

रविवार, 10 जनवरी 2021

तुम मिलो तो....


   



        तुम मिलो तो…….


होठों पे मुस्कानी गुलिस्ताँ सजा रखा है,

हाँ मैने आँसुओं को पत्थर बना रखा है। 


तुम मिलो तो उमड़ कर बरस जाऊं,

सुर्ख आँखों में समंदर छिपा रखा है।।

           अवध कुमार...✍️

शुक्रवार, 8 जनवरी 2021

अभिलाषा





                     अभिलाषा 
साकार हो मेरे स्वप्न सुनहरे, मेरी अदम्य अभिलाषा है। 
सार्थक होगें मेरे प्रयत्न,  ऐसी  कोमल  सी  आशा है।। 

                       अज्ञात...✍️

गुरुवार, 7 जनवरी 2021

काश

   





 काश!


काश! प्रभाकर की किरणों पर,

              गर अक्षर लिक्खा जाता ।

मैं अपने सारे खत तुम तक,

                   लश्कारों से पहुँचाता।।





काश! हवा के झोंके सुनतें,

                 कानाफूसी कर आता। 

मैं अपने सारे सन्देशे,

                 समीरणों से पहुँचाता।। 





काश! तिमिर जी पथ बन जातें,

         या मैं स्वयं तिमिर बन जाता। 

कहीं अंधेरे मे गर चलतें,           

             गिरने से मैं तुम्हें बचाता ।।


बाहुपाश मे भरकर तुमको,

           रोज रात को तुम्हें सुलाता। 

 गर सपनो से नींद उचटती,

          थपकी देकर पुनः सुलाता ।।





काश! दिवा मे मैं घुल जाता,

         या मैं सूर्य-किरण बन जाता। 

सर्दी मे गुनगुन सी गरमी,

              देकर सारी ठंड भगाता।।


सागर के पानी पर जैसे,

           सूरज अद्भुत रंग सजाता ।

सुबह तुम्हारे चेहरे पर मैं,

     झिलमिल इक तस्वीर बनाता ।।


एकाकी में कभी बैठतीं,

         सूर्य-रश्मि बन नैन मिलाता। 

तुम इठलाकर बाते करतीं ,

           मैं चितवन करते इतराता।। 


बाद वृष्टि के खिली धूप, या-

     शामों की बन स्वर्ण-लालिमा। 

कभी मैं तुमको हर्षित करता,

       कभी मैं अपनी याद दिलाता।।  


            



काश! पवन जी मुझसे चलतें,

         या मैं स्वयं पवन बन जाता।

गर्मी में तर-बदर बदन का,

           समीरणों से स्वेद सुखाता।।


चंदन गुलाब जैसे बागों की,

          मैं खुशबू मनमोहक लाता। 

कभी तुम्हारी सांस कभी,

        शीतल मस्त वायु बन जाता।।





काश! कहीं बादल बन जाता,

    काश! कहीं मैं जल बन जाता। 

प्यास बुझाता पानी बनकर,

    रक्त मे मिलकर दिल धड़काता।।





काश! कहीं आकाश मैं होता,

    काश! कहीं अवकाश मैं होता ।

बाहर से तुम मुझ मे होती,

          अन्दर से मैं तुझ मे होता।। 


                   अवध कुमार...✍️









       

        


शुक्रवार, 1 जनवरी 2021

अर्ज किया था


         



अर्ज किया था, थोड़ी सी पिला दो। 
तड़पती रूह की, प्यास बुझा दो।

उन्होने ऐसी पिलाई, पीता ही गया,
इल्तिज़ा है,
 आज फिर, होंठों से पिला दो। 
                अवध कुमार..✍️

मुझको मुझमे ही रहने दो

'मेरा दर्द' मुझे ही सहने दो,  'मुझको' मुझमे ही रहने दो । मैं क्या करता हूँ? पता नहीं,   'पर जो क...