उनके सलूक से, इस क़दर भर आयीं आंखें,
कि नजर मे सब अंधेरा है।
बे-इंतहा दर्द की, यह कैसी रात थी!
यह कैसा सवेरा है!
प्रेम की अनुभूति होते ही, प्राणी आत्मानंदित हो उठता है, शरीर का रोम रोम पुलकित हो उठता है। आत्मा को एक दिव्य सुख अनुभूति होती है। आत्मपूर्णता की अनुभूति होती है । जब प्राणी स्वयं में पूर्ण हो जाता है, या पूर्णता की ओर बढ़ रहा होता है, तब दिव्य सुख की अनुभूति स्वाभाविक है। यही कारण है कि प्रेम की अनुभूति होने पर वाणी मे मधुरता आ जाती है, क्रोध कम होने लगता है, आसपास का वातावरण तक बसंती, आनंददायी, सुखदायी लगने लगता है । प्रेम माँ की ममता की तरह ही एक ईश्वरीय आशीर्वाद है, एक आत्मीय अनुभूति है।
'मेरा दर्द' मुझे ही सहने दो, 'मुझको' मुझमे ही रहने दो । मैं क्या करता हूँ? पता नहीं, 'पर जो क...
बहुत खूब जनाब
जवाब देंहटाएंआभार मित्रेन्द्र 🙏🙏
हटाएंVery nice😥
जवाब देंहटाएंवैरी गुड कहके रो रहे हो,
हटाएंये मेरे जज़्बात हैं अपने पे क्यूं ले रहे हो?
हां, ये दिल के जज़्बात हैं, कला नही है।
लेकिन, मुहब्बत बहुत खूबसूरत है, कोई बला नही है।