कल आसमां मे चाँद अधूरा था,
पर, भरपूर जवां था, उसमें नूर पूरा था।
छुपा-रुस्तम होना इसी ने सिखाया मुझको,
कल तक मै भी अपर्णा था अधूरा था।।
अवध कुमार।
अपर्णा - वह वृक्ष जिसके पत्ते झड़ चुके हो।
जो भी करो, गज़ब करो।
बात करो या अदब करो।।
इक रोज तो दीदार करना ही होगा ,
ये आपकी मर्जी है, तब करो या अब करो ।।
अवध कुमार, सुमित अर्कवंशी ।
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