-:- वेदना -:-
किस दुख से
दृग तरल किए?
किस भय से,
तुम विकल गए?
क्यूँ आह भरी,
मुझसे मिलकर?
क्यूँ आंख से,
मोती निकल गए?
वह कौन सी पीर,
उठी मन में?
क्यूँ वसुधा भीगी,
अँसुवन में?
क्यूँ मेरी धरा,
अधीर हुई?
क्या व्यथा हुई,
क्या पीर हुई?
खोने का भय,
हिय व्याप्त हुआ?
या लगा प्रेम,
पर्याप्त हुआ?
क्या सपने सारे
पिघल गए?
जो आंसू बनकर
निकल गए?
हे! वसुंधरे,
कुछ तो बोलो,
अंबर कह रहा,
अधर खोलो ।
तुम तो हो धरा,
मत हो अधीर।
बरसात करूं,
मैं प्रेम नीर।
तुमको अर्पण मम्, प्रेम-सिंधु।
मम् प्राणवल्लभा, प्रिया-इंदु।।
क्या बात है ,तुम तो गजब का लिखे हो भाई
जवाब देंहटाएंप्रिय एन पी जी आपका बहुत बहुत धन्यवाद।🙏🙏
हटाएंशब्द नही है मेरे पास बहुत ही प्रशंशनीय
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार 🙏🙏 सुमित जी।
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