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सोमवार, 7 जून 2021

मुझको मुझमे ही रहने दो





'मेरा दर्द' मुझे ही सहने दो,

 'मुझको' मुझमे ही रहने दो ।

मैं क्या करता हूँ? पता नहीं, 

 'पर जो करता हूँ' करने दो ।।


तुम दर्द मिटा दोगे मेरे ? 

छोड़ो जी, जाओ, रहने दो ।

ये दर्द मुझे ज़न्नत जैसे,

मेरी ज़न्नत में मुझे रहने दो ।। 

 




मदमस्त-हवा के कानो में,

 थोड़ी सरगोशी भरने दो ।

सूरज की किरणों पर मुझको,

संदेश मेरे कुछ लिखने दो ।।


ये ख़्वाब मेरे सब मिट्टी हैं, 

इनको मिट्टी ही रहने दो ।

कोई लाश हवा में बहती है, 

तुमको क्या करना बहने दो ।।

 

 



तुम काँच का प्याला चमकदार,

 कितनो से होठ लगाना है ! 

मैं मिट्टी का कुल्हड़ हूँ जी,

 इक-को छूकर मर जाना है ।। 


लो मान लिया मै मिट्टी हूँ,

 मुझको मिट्टी ही रहने दो। 

तुम रोज़ अनगिनत लब चूमो, 

मुझे इश्क़ एक से करने दो ।। 





पर्वत झरने में पिघल गया, 

हाय! कितना दर्द सहा होगा ।

असहज होगी उथल-पुथल,

'तब जाकर कहीं' बहा होगा ।।


पर्वत-सी पीर सहे पर्वत, 

पाषाण दिलों में रहने दो । 

हम पत्थर-दिल ही अच्छे हैं,

तुम पत्थर-दिल ही रहने दो ।।





श्मशान उम्मीदें कब करता ? 

 'बारात मेरे घर आएगी' । 

कब लाश उम्मीदें करती है ? 

 'फिर जीवन पा जाएगी' ।।


बस्ती औ चौराहों पे, 

मुर्दे जलते हैं जलने दो ।

सुनसान अंधेरी नगरी में, 

दीपक को रोशनी करने दो ।।


 चीखों से भरा मरघट हूँ मैं, 

मुझको मरघट ही रहने दो ।

जलती लाशों की लपटों को, 

जलती लाशों को सहने दो ।। 


मंगलवार, 11 मई 2021

मैं क्या हूँ?



ये हाथ मेरे हैं, ये आंखे मेरी हैं, यह शरीर मेरा है, यह दिल मेरा हैं, 

यह बुद्धि मेरी है, यह मन मेरा है, ये विचार मेरे है,

फिर मैं क्या हूँ? आत्मा? नही, नही। 

यह आत्मा मेरी है, मतलब मै आत्मा नही कुछ और हूँ। मगर हूँ क्या? 


स्थूल शरीर से सूक्ष्म शरीर तक का हर एक अंग मेरा है। तो मैं क्या हूँ?

किसी ने कहा था "वह सबकुछ निकाल दो जो आप नही हो, तत्पश्चात जो बचेगा वह आप होंगे" ।


जब मैने 'वह सबकुछ निकाल दिया जो मै नही था', तो पता चला कुछ बचा ही नही । 

यही सच है, "मैं" नाम की कोई चीज है ही नहीं ।

अर्थात् सबकुछ मेरा तो है, परन्तु मैं कुछ भी नही ।


अब अगर बात करें, कि 'क्या "मैं" का कोई अस्तित्व है'?

यदि "मैं" जैसी कोई चीज है? तो वह है "हम" ।


क्योंकि हमारी रचना स्थूल एवं सूक्ष्म शरीर के अनेक अंगों का मिश्रण है ।

हम एक नही, अनेक अंग (स्थूल शरीर, बुद्धि, मन, भावना, आत्मा आदि ) हैं ।

अर्थात् हम जिसे "मैं" कहते हैं, वास्तव में वह "हम" है ।



शायद शरीर के सभी अंग मिलकर इस मिश्रित संरचना को किसी नाम से इंगित करना चाहते हैं, शायद ये इस मिश्रित संरचना को "हम" से इंगित करना चाहते हैं, परन्तु अज्ञानता वश "मैं" "मैं" रटा करते हैं । 



इसे ऐसे समझने का प्रयास करते हैं-


 मान लो,

       एक जगह 20 व्यक्ति इकट्ठे हैं, वे सब मिलकर कहें कि "हम एक समूह हैं" या "हम समूह हैं"। तो बात समझ आती है । 

लेकिन यदि उनमे से कोई कहे "मैं समूह हूँ", या सभी मिलकर एक साथ कहें "मैं समूह हूँ" तो यह उनकी अज्ञानता ही होगी ।



यदि शरीर, मन, बुद्धि, हृदय, भावनाएं, आत्मा कुछ न हो तो मैं भी न हूँगा, कुछ न हूँगा । ये सब हैं तो मैं हूँ ।इनके साथ सबकुछ हूँ, इनके बिना कुछ भी नही । 


यही तो है अहम् से वयम् की यात्रा । 

यही तो है मैं से हम की यात्रा । 

यही तो है बिंदु से सिंधु हो जाना । 

यही तो है संक्षिप्त से विस्तृत हो जाना ।ो


फिर भी अहम् से वयम् की यह यात्रा तो सिर्फ बौद्धिक है, वास्तविक तो तब होगी जब हम 'मैं की जगह हम को' आचरण में उतार लेंगे ।


रविवार, 9 मई 2021

Perfect

Hey! Guys, 

     My dear friend Rishindranath sung a beautiful song "perfect",

 for listen his sweet voice please click here 👉 ▶️ or Play. 





Lyrics- I found a love for me
Oh darling, just dive right in and follow my lead
Well, I found a girl, beautiful and sweet
Oh, I never knew you were the someone waiting for me
'Cause we were just kids when we fell in love
Not knowing what it was
I will not give you up this time
But darling, just kiss me slow, your heart is all I own
And in your eyes, you're holding mine
Baby, I'm dancing in the dark with you between my arms
Barefoot on the grass, listening to our favourite song
When you said you looked a mess, I whispered underneath my breath
But you heard it, darling, you look perfect tonight
Well I found a woman, stronger than anyone I know
She shares my dreams, I hope that someday I'll share her home
I found a love, to carry more than just my secrets
To carry

बोलो जी जनतंत्र कहाँ है?



संविधान में सम-विधान है, 

किस-किस को संविधि का ज्ञान है? 

भोली जनता दर-दर लुटती,

हाय! दस्यू को दस्युता शान है । 


संविधि-ज्ञाता न्यायशील हों, 

वह विक्रम-सा तंत्र कहाँ है? 

बोलो जी जनतंत्र कहाँ है? 

राम-राज्य का मंत्र कहाँ है?

रविवार, 2 मई 2021

ऐ वक्त बता........



ऐ वक्त बता तेरे सितम की सरहद कहाँ होगी ?
यही होगी दर्दे हद, तो हद कहाँ होगी? 

खतम कर दूं? पीछे कदम धर दूं? 
हह्हा हह्हा......... 

ये होगी हमारी मोहब्बत की हद, 
तो मोहब्बत बेहद कहाँ होगी? 
         

गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

गुनहगार



सजा दो मुझे हाँ गुनहगार हूँ मैं,

हर जख़्म सहने को तैयार हूँ मैं ।


सजा दो मुझे हाँ गुनहगार हूँ मैं.......





मुझे मेरे रब ने है शीशा दिखाया,

फ़क़त व्यर्थ हूँ,  हाँ बेकार हूँ मैं ।


सजा दो मुझे हाँ गुनहगार हूँ मैं.......





चला था चमकने, मै उनके जहां मे,

मुझे न पता था खुद अंधियार हूँ मैं ।


सजा दो मुझे हाँ गुनहगार हूँ मैं.......





तमन्ना थी उनको मैं अनहद खुशी दूं, 

मगर क्या करूं दुख का बाजार हूँ मैं । 


सजा दो मुझे हाँ गुनहगार हूँ मैं.......





सभी को थीं उम्मीदें मुझसे बथेरी, 

सभी के स्वपन का कतलगार हूँ मैं ।


सजा दो मुझे हाँ गुनहगार हूँ मैं.......





जिसे पाने को मैने छोड़ा जमाना, 

वो कहते हैं नफ़रत का हकदार हूँ मैं ।


सजा दो मुझे हाँ गुनहगार हूँ मैं.......





उनकी ख़ता तो तनिक भी नही है, 

दरअसल आजकल थोड़ा बीमार हूँ मैं  ।


सजा दो मुझे हाँ गुनहगार हूँ मैं.......





मैं कहता हूँ "वसुधे! मै तेरा गगन हूँ, 

वो कहते हैं इस धरती पर भार हूँ मैं ।


सजा दो मुझे हाँ गुनहगार हूँ मैं.......





यूं बकवास करना तो आदत है मेरी, 

अजी! ख़ब्ती, दीमागी-बीमार हूँ मैं  ।


सजा दो मुझे हाँ गुनहगार हूँ मैं.......




उन्हे मेरी ज़िद से बहुत दुख मिले हैं, 

अभी भी उन्ही का तलबगार हूँ मैं । 


सजा दो मुझे हाँ गुनहगार हूँ मैं.......





अभी खून मुंह से निकला नहीं है,

अभी मत समझना वफादार हूँ मैं  ।


सजा दो मुझे हाँ गुनहगार हूँ मैं.......



                 

रविवार, 28 मार्च 2021

स्मृति



सब पूछ रहें "क्या लाओगे" ? 

कुछ न कुछ सबको बता दिया । 

बेटा, "तुम घर कब आओगे" ?

 पूछ के माँ ने रूला दिया ।। 



होली मे घर आऊंगा,

अम्मा को ढांंढस बंधा दिया । 

तो घर-गलियों की यादों ने, 

मेरी व्याकुलता बढ़ा दिया ।। 



जाने के दिन नजदीक हुए, 

यादों का चित्रण उभर गया । 

"कहाँ रोज लगती थी संगति, 

 स्वर्णिम शामों में किधर गया" ! 



वो कंचे, वो गिल्ली-डंडा, 

रस्ते में खुरपी से गड्ढा 

जामुन पेरुक अम्बिया अमरा-

से स्मृति पटल सचित्र हुआ ।। 



आह्लाद, प्रह्लाद के रंगों से, 

हर इक चित्र विचित्र हुआ ।

मन के उपवन मे "मेह देख- 

फिर मेहप्रिय का नृत्य हुआ" ।।



इक इक क्षण सदियों जैसा,

ज्यों काले जंगल का रस्ता । 

गिन-गिन के भावविभोर हुआ,

तब गमन दिवस का भोर हुआ ।। 

Avadh Kumar.....✍️

 

बुधवार, 24 मार्च 2021

मैं तुम्हारा होना चाहता हूँ



जो बांहे फसाकर चले साथ हम तुम, 

उन बांहो में रातों को सोना चाहता हूँ,

मैं तुम्हारा होना चाहता हूँ । 


जिस प्यार की हसरत रही है मुझे उम्र भर, 

वो प्यार तुम्हें देना चाहता हूँ,

मैं तुम्हारा होना चाहता हूँ । 


पहले मिलन पर मिली जो खुशी थी, 

ये दुनिया बहुत खूबसूरत लगी थी,

उसी दुनिया में खोना चाहता हूँ, 

मैं तुम्हारा होना चाहता हूँ । 


इक दूसरे को मुहब्बत का घर दें , 

जो ख़्वाहिशें हैं 'हकीकत में कर दें',

तुम्हारे संग खुद को संजोना चाहता हूँ, 

मैं तुम्हारा होना चाहता हूँ ।



वीराने में तो बहुत रो चुका हूँ, 

भरी महफिलें भी हुईं पानी-पानी,

कसम है तुझे आके सीने लगा ले,

अब, तेरी बाँहों में रोना चाहता हूँ,


मैं तुम्हारा होना चाहता हूँ ।

रविवार, 21 मार्च 2021

खुशी, शांति और आत्म-सुख




भीड़ में लोगों से मुलाकात होती है ।
 एकांत में स्वयं से ।

लोगों से मिलकर खुशी मिलती है।
 स्वयं से मिलकर शांति ।

और

आध्यात्मिक से मिलकर
सुख मिलता है, आत्म-सुख ।
अर्थात् परम्-सुख मिलता है ।

                 AvadhKumar.....✍️

रविवार, 21 फ़रवरी 2021

इस कदर



इस क़दर बरसे वो हम पे,
कि बंजर जमीं, समंदर हो गई। 



मैं सब कुछ जीत कर, खुद को हार गया, 
वो सबकुछ हार कर, सिकंदर हो गई ।।
                                अवध कुमार...✍️

मंगलवार, 16 फ़रवरी 2021

मैने मुड़के वापस नही आना


शक के बादलों

पर्वत में

 मत बदल जाना, 


समर्पण के महल मेरे

आंसूओं में 

मत पिघल जाना । 


अपने आबिद को सम्भाल-

मेरे माबूद, 

मैने मुड़ के वापस नही आना ।।

रविवार, 7 फ़रवरी 2021

तुमने छुआ


              तुमने छुआ 

तुमने छुआ उंगलियों को नजरें झुकाकर,

                                   मैं कर्जदार हो गया। 

वो खुशी ,वो फिजा, वो लम्हा 

                                सब यादगार हो गया।। 

                                      अवध कुमार...✍️

गुरुवार, 4 फ़रवरी 2021

वफा़

 

 


             वफा़


खुद को भूला, खुदा को भी भूला,

इंतहा के लिए और क्या चाहिए ? 


न छुएगें लबों को, कभी भी किसी के,

वफा़ के लिए और क्या चाहिए ? 


कदमों मे तेरे, शवा हो गए हम, 

इम्तिहाँ के लिए और क्या चाहिए ? 


झोकों मे तेरे, उड़ा हूँ पतंग सा, 

बता ऐ हवा और क्या चाहिए ? 


तुम्हारे सिवा, याद रहता नही कुछ,

नशा के लिए और क्या चाहिए ? 


ख़ताएं तुम्हारी, क्षमा मैने मांगी, 

राब्ता के लिए और क्या चाहिए ? 


ज़माने के सारे, सितम सह गया मै, 

अदा के लिए और क्या चाहिए ?


ख़ुद्दारी गवाँ दी, तेरी ख़ुशी में, 

फ़ना के लिए और क्या चाहिए ?


सुलगती इश़क की, अगन जल उठेगी, 

तुम्हारे  नजर  की  हवा  चाहिए ।


सातों  जनम  संग   तेरे   रहूंगा, 

फ़क़त इक वफा का मकां चाहिए ।


मैने तो सबकुछ बयां कर दिया है,

बयां के लिए और क्या चाहिए ?


न छुएगें लबों को कभी भी किसी के,

वफा़ के लिए और क्या चाहिए ? 


                         अवध कुमार....✍️



इंतहा = हद, (अंतिम सीमा) । 

इम्तिहाँ = इम्तिहान। 

शवा = ख़ाक, ।

राब्ता = रिश्ता ।

अदा के लिए  = निभाने के लिए ।

हवा = वायु , प्रोत्साहन ।






बुधवार, 3 फ़रवरी 2021

लाजवाब हो गया



        लाजवाब हो गया 


दो शबाबों का मुरक्कब, शराब हो गया ।

तेरी खुशबू से मैं भी, गुलाब  हो  गया ।।


इश्क़ तो पहले भी था,    हसीन  था ।

अब बे-हिसाब, अब ला-जवाब हो गया ।। 

                     अवध कुमार…..✍️


मुरक्कब (उर्दू ) = मिश्रण(हिन्दी), Mixture(English).

शुक्रवार, 29 जनवरी 2021

बे-इंतहा प्यार



    बे-इंतहा प्यार 

आ तुझे बे-इंतहा प्यार दूं,
तुझे, तेरे सपनो का संसार दूं। 


भटकते शख्स को इक वफा़ का मकां दे दे, 
बता तेरे कदमों मे सिर भी उतार दूं? 

                       अवध कुमार...... ।

छलकती आंखें



उनके सलूक से, इस क़दर भर आयीं आंखें, 
कि नजर मे सब अंधेरा है। 

बे-इंतहा दर्द की, यह कैसी रात थी! 
यह कैसा सवेरा है! 
            अवध कुमार 

गुरुवार, 28 जनवरी 2021

बेताब निगाहें




बागी-निगाहों से कुछ जता रहे थें, 

मिलने को हूँ बेताब यह बता रहे थें ।




जो आहट सुनते ही भाग जाते थें हमे छोड़ कर, 

कल वो पापा के सामने नजरें मिला रहे थें।। 

                         अवध कुमार। 

सोमवार, 18 जनवरी 2021

छुपा-रुस्तम चाँद




     कल आसमां मे चाँद अधूरा था, 
पर, भरपूर जवां था, उसमें नूर पूरा था। 

छुपा-रुस्तम होना इसी ने सिखाया मुझको, 
  कल तक मै भी अपर्णा था अधूरा था।। 
   
                               अवध कुमार। 

अपर्णा - वह वृक्ष जिसके पत्ते झड़ चुके हो। 



            जो भी करो, गज़ब करो। 
           बात करो या अदब करो।। 
    इक रोज तो दीदार करना ही होगा ,
ये आपकी मर्जी है, तब करो या अब करो ।।
                    अवध कुमार, सुमित अर्कवंशी ।

रविवार, 17 जनवरी 2021

हे! जननी






हे! जननी 


जननी मनोव्यथित न हो,

हे ममतामयी! दुःखित न हो। 


व्याकुल, अनव्स्थित न हो,

भयभीत न हो, माँ त्रसित न हो।।



माँ धैर्य धरो, माँ धैर्य धरो,

व्याकुलता और बढ़ाओ न। 


अनमोल आपके अश्रु-रत्न, 

अँखियन से इन्हे गिराओ न।।



रोने से आपके नभ रोए,

भू भी अपना धीरज खोए। 


जो चरणस्पर्श से पवित्र हुई,

वह घर की खेत की रज रोए।। 


मै हूँ, माँ विचलित न हो, हे ममतामयी! दु:खित न हो। 



 

जब तक शरीर में श्वांस शेष,

तब तलक आत्म-विश्वास शेष। 


सौगंध आपके क्षीर की माँ, 

सौगंध पाणि-लकीर की माँ।। 



होने देता अपमान नहीं, 

खोने देता सम्मान नही।

 

अपयश के तिमिर हटा दूँगा,

मैं सब अपवाद मिटा दूँगा ।।



नभ में सूरज जब चमकेगा,

सब तिमिर दूर हो जाएगा। 


दुखभरी रैन छट जाएगी, 

फिर सुखद भोर हो जाएगा।। 


मेरी मइया विकलित न हो, हे ममतामयी! दुखित न हो। 




क्यूँ नयन आपके द्रवित हुए?

मैं सोंच के भाव-विभोर हुआ।


कोई दबी आह सी फूट पड़ी,

क्लेशित हिय का हर छोर हुआ ।।



सद्मार्ग पे हूँ सन्मार्ग पे हूँ, 

मत सोंचो कि अपमार्ग पे हूँ। 


सत्य प्रेम धर्मच्युत मार्ग,

बतलाए आपके मार्ग पे हूँ।। 



सूर्य-रश्मियों को मइया,

कब तक नीहार ढक पाएगा? 


लाख जलद गरजे बरसे,

तो क्या सूरज बुझ जाएगा?


हे माते! चिंतित न हो, हे ममतामयी! दुःखित न हो। 




तपलीन हुआ भागीरथ तो,

धरती पर गंगा आएगी। 


बसंत ऋतु पर कोयल क्या-

हवा मल्हारें गाएगी।। 



पीपल के नये-नये पत्ते,

देख मनस् हर्षाएगा। 


नव सुमन खिलेंगे उपवन मे,

जग प्रेममयी हो जाएगा।। 



होली मे ढोलक की ताने,

गलियों मे होली के गाने। 


चहुंमुखी प्रेम छा जाएगा,

जैसे द्वापर आ जाएगा।। 


जग प्रेममयी हो जाएगा, आनंदमयी हो जाएगा। 

सर्वतोमुखी बस सुख होगा, भोली मातु भ्रमित न हो।

                               अवध कुमार ।








शनिवार, 16 जनवरी 2021

तेरी मुश्किलों का लिहाज करते हैं



तेरी मुश्किलों का लिहाज करते हैं, 
वर्ना हम, कब? किससे डरते हैं? 

लोग डरते होंगे मरने से,
हम तो हर रोज तुमपे मरते हैं।।
      अवध कुमार.. ✍️

रिश्ते



यदि आपको
 "प्यार पाने की चाह" को नजर-अंदाज करके  प्यार देना आता है, तो 
"आपका रिश्ता लम्बे समय तक चलेगा"। 

और यदि आपका साथी भी ऐसा ही है, 
तो "रिश्ता उम्र भर चलेगा" ।। 


       अवध कुमार.. ✍️

शुक्रवार, 15 जनवरी 2021

ये बेचैनियां



आज मेरी बेचैनियों से मुझे डर लगा,
जैसे किसी अनहोनी का असर लगा। 

ऐ वक्त! तुझे भी बर्बाद कर दूंगा, "मुहब्बत की ख़ातिर",
मेरी मुहब्बत को मत नजर लगा।।

गुरुवार, 14 जनवरी 2021

रिश्ते



हमारा प्रेम उस मोड़ पर आ पहुंचा है जहाँ,
 अक्सर रिश्ते टूट जाया करते हैं। 
दर असल जब प्रेम अपनी चरम सीमा को
 छू रहा होता है तब अक्सर रिश्ते टूट जाते हैं। 

यह वही मुकाम है जहाँ लोग कहते हैं,
 इनके प्यार को किसी की नजर लग गयी। 

यहाँ बहुत ही सावधानी बरतनी होती है।
                     अवध कुमार..✍️

बुधवार, 13 जनवरी 2021

हम हों तुम हों














लोहड़ी, होली, रखड़ी, दिवाली, 
 सब   खुशियां    भरे   त्योहार    हों ।
 
हम हों-तुम हों, हमारा-तुम्हारा प्यार हो,
  पास के पड़ोसी हों, साथ में परिवार हो ।।
             अवध कुमार.....✍️

मंगलवार, 12 जनवरी 2021

आपके इश्क़ मे




आपके इश्क़ मे कोई फ़क़ीर हो जाए तो,
 सम्भाल कर रख लेना। 

क्यूंकि,

न तो कोई दिल, हर किसी के लिए, जोगी  होता है,
और न ही,
 किसी के लिए , हर कोई दिल, जोगी होता है। 
          अवध कुमार.... ✍️

रविवार, 10 जनवरी 2021

तुम मिलो तो....


   



        तुम मिलो तो…….


होठों पे मुस्कानी गुलिस्ताँ सजा रखा है,

हाँ मैने आँसुओं को पत्थर बना रखा है। 


तुम मिलो तो उमड़ कर बरस जाऊं,

सुर्ख आँखों में समंदर छिपा रखा है।।

           अवध कुमार...✍️

शुक्रवार, 8 जनवरी 2021

अभिलाषा





                     अभिलाषा 
साकार हो मेरे स्वप्न सुनहरे, मेरी अदम्य अभिलाषा है। 
सार्थक होगें मेरे प्रयत्न,  ऐसी  कोमल  सी  आशा है।। 

                       अज्ञात...✍️

गुरुवार, 7 जनवरी 2021

काश

   





 काश!


काश! प्रभाकर की किरणों पर,

              गर अक्षर लिक्खा जाता ।

मैं अपने सारे खत तुम तक,

                   लश्कारों से पहुँचाता।।





काश! हवा के झोंके सुनतें,

                 कानाफूसी कर आता। 

मैं अपने सारे सन्देशे,

                 समीरणों से पहुँचाता।। 





काश! तिमिर जी पथ बन जातें,

         या मैं स्वयं तिमिर बन जाता। 

कहीं अंधेरे मे गर चलतें,           

             गिरने से मैं तुम्हें बचाता ।।


बाहुपाश मे भरकर तुमको,

           रोज रात को तुम्हें सुलाता। 

 गर सपनो से नींद उचटती,

          थपकी देकर पुनः सुलाता ।।





काश! दिवा मे मैं घुल जाता,

         या मैं सूर्य-किरण बन जाता। 

सर्दी मे गुनगुन सी गरमी,

              देकर सारी ठंड भगाता।।


सागर के पानी पर जैसे,

           सूरज अद्भुत रंग सजाता ।

सुबह तुम्हारे चेहरे पर मैं,

     झिलमिल इक तस्वीर बनाता ।।


एकाकी में कभी बैठतीं,

         सूर्य-रश्मि बन नैन मिलाता। 

तुम इठलाकर बाते करतीं ,

           मैं चितवन करते इतराता।। 


बाद वृष्टि के खिली धूप, या-

     शामों की बन स्वर्ण-लालिमा। 

कभी मैं तुमको हर्षित करता,

       कभी मैं अपनी याद दिलाता।।  


            



काश! पवन जी मुझसे चलतें,

         या मैं स्वयं पवन बन जाता।

गर्मी में तर-बदर बदन का,

           समीरणों से स्वेद सुखाता।।


चंदन गुलाब जैसे बागों की,

          मैं खुशबू मनमोहक लाता। 

कभी तुम्हारी सांस कभी,

        शीतल मस्त वायु बन जाता।।





काश! कहीं बादल बन जाता,

    काश! कहीं मैं जल बन जाता। 

प्यास बुझाता पानी बनकर,

    रक्त मे मिलकर दिल धड़काता।।





काश! कहीं आकाश मैं होता,

    काश! कहीं अवकाश मैं होता ।

बाहर से तुम मुझ मे होती,

          अन्दर से मैं तुझ मे होता।। 


                   अवध कुमार...✍️









       

        


शुक्रवार, 1 जनवरी 2021

अर्ज किया था


         



अर्ज किया था, थोड़ी सी पिला दो। 
तड़पती रूह की, प्यास बुझा दो।

उन्होने ऐसी पिलाई, पीता ही गया,
इल्तिज़ा है,
 आज फिर, होंठों से पिला दो। 
                अवध कुमार..✍️

मुझको मुझमे ही रहने दो

'मेरा दर्द' मुझे ही सहने दो,  'मुझको' मुझमे ही रहने दो । मैं क्या करता हूँ? पता नहीं,   'पर जो क...